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होते हैं जब तक प्रादर पूर्वक श्रीसिद्धचक्रजी का स्मरण नहीं करते हैं । इस तप को करने वाली स्त्रियाँ भी विशेष पूर्वक वन्ध्यत्व (बाँझपना ), निन्दु-मृत वत्सापना इत्यादि दोषों को तिलांजलि देती हैं तथा उन्हें कभी बालविधवापना, दुर्भागीपना, कुरूपता, दुर्भागपना और दासीपना इत्यादि प्राप्त नहीं होते हैं ।। ५-६ ।।
आराधना की विशिष्टता
यद्यदेवाभिवाञ्छन्ति, जन्तवो भक्तिशालिनः । तत्तदेवाप्नुवन्ति श्री सिद्धचक्रार्चनोद्यताः ।। १०
एतदाराधनात् सम्यगाराद्धं जिनशासनम् । यतः शासन सर्वस्व मेतदेव निगद्यते ।। ११
एभ्यो नवपदेभ्योऽन्यन्नास्ति तत्त्वं जिनागमे । ततो नवपदी ज्ञेया, सदा ध्येया च धीधनैः ।। १२ ।।
इस श्रीसिद्धचक्र-नवपदजी की आराधना में उद्यत ऐसे भक्तिशाली जीव जिस-जिस वस्तु की अभिलाषा ( इच्छा ) करते हैं, वह वस्तु उन्हें प्रवश्य प्राप्त होती है । इसकी आराधना से श्रीजिनशासन का सम्यक् प्राराधन होता है । इसलिये श्रीसिद्धचक्र के नवपद जिनशासन के सारभूत कहलाते हैं | नवपद बिना अन्य तत्त्व जिनागम में नहीं
श्री सिद्धचक्र -नव पदस्वरूपदर्शन- ३२७