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आराधना करने वाला आराधक आत्मा लौकिक और लोकोत्तर उभय वस्तु-फल को प्राप्त कर सकता है। इस सम्बन्ध में 'श्रीसिद्धचक्राराधनफलचतुर्विशतिका' में कहा है कि--
एवं श्रीसिद्धचक्रस्या-राधको विधिसाधकः । सिद्धाख्योऽसौ महामन्त्र-यन्त्रःप्राप्नोति वाञ्छितम् ॥१॥ धनार्थी धनमाप्नोति, पदार्थी लभते पदम् । भार्यार्थी लभते भार्यां, पुत्रार्थी लभते सुतान् ॥ २ ॥ सौभाग्यार्थी च सौभाग्यं, गौरवार्थी च गौरवम् । राज्यार्थी च महाराज्यं, लभतेऽस्यैव तुष्टितः ॥ ३ ॥ एतत् तपोविधातारः, पुमांसः स्युर्महर्द्धयः । सुर-खेचरो-राजानो, रूपसौभाग्यशालिनः ॥ ४ ॥
महामन्त्र-यन्त्रमय श्रीसिद्धचक्रजी की विधिपूर्वक आराधना करने वाले आराधक प्रात्मा को वांछित वस्तु (फल) की प्राप्ति होती है। इनकी प्रसन्नता से धन के अर्थी को धन मिलता है । पद के अर्थी को पद मिलता है। स्त्री के अर्थी को स्त्री मिलती है। पुत्र के अर्थी को पुत्र मिलता है । सौभाग्य के अर्थी को सौभाग्य प्राप्त होता है। गौरव की इच्छा वाले को गौरव मिलता है। राज्य की इच्छा वाले को विशाल राज्य मिलता है। इस तप को करने
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-३२५