________________
होने पर भी महत्त्व में सर्वोपरि है। कारण यही है कि इस सम्यक् तप के बिना आत्मा पंचपरमेष्ठी पदों में से एक भी पद प्राप्त नहीं कर सकता । यही इसका महत्त्व है | नवपद में प्रारम्भ के श्री अरिहन्तादि पाँच धर्मी एवं गुणी पद हैं तथा शेष श्रीदर्शनादि चार धर्म एवं गुण पद हैं । सब मिलकर श्रीसिद्धचक्र के इन नवपदों का नौ अंक अक्षय खण्डित है |
श्रीनवपद आराधना का फल
श्रीसिद्धचक्र के नवपद हैं । इन पदों का माहात्म्य इस प्रकार है । श्री नवपद का यथार्थ विधिपूर्वक प्राराधन करने वाला आराधक श्रात्मा उत्कृष्ट नवमे भव में प्रवश्य संयम साधना द्वारा सकल कर्मों का क्षय कर सिद्धिपदमोक्षपद-परमपद अवश्यमेव प्राप्त करता है । बीच में देव और मनुष्य के सुन्दर सामग्रियों युक्त भव पाता है तथा विश्व में उत्तम यश और कीर्ति भी प्राप्त करता है ।
श्री नवपदजी के प्रभाव से वाञ्छित वस्तु (फल) की प्राप्ति
श्रीसिद्धचक्र-नवपदजी महाराज का पुण्य प्रभाव अद्वितीय, अनन्य और अद्भुत है; चिन्तामणिरत्न, कल्पवृक्ष, कामघट और कामधेनु से भी अधिक है । इनकी विधिपूर्वक
I
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन- ३२४