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को मेरा नमस्कार हो ।
(७) श्रीसम्यग्ज्ञानपद
अज्ञान के समूह रूप तिमिर अन्धकार को दूर करने वाले तथा तत्त्वों को प्रकाशित करने में सूर्य के सदृश ऐसे 'श्री सम्यगज्ञान' को मेरा नमस्कार हो ।
(८) श्रीसम्यग् चारित्रपद
अखण्ड सत्क्रिया की आराधनामय वीर्य वाले ऐसे 'श्री सम्यगुचारित्र' को मेरा नमस्कार हो ।
(६) श्री सम्यग्तपपद
कर्म रूपी वृक्ष को उखाड़ने में गजराज - हाथी के समान ऐसे 'श्री सम्यगतपपद' को मेरा नमस्कार हो ।
इस तरह नव पदों से सिद्ध शोभा को प्राप्त हुए अर्थात् नवपदमय, लब्धिपदों तथा विद्यादेवियों से समृद्ध, स्वरों और वर्गों से प्रगट शोभा वाले, ह्रीँ अक्षर की तीन रेखाओं से समलंकृत, दिक्पाल तथा अन्य देव - देवियों द्वारा प्रधान, पृथ्वी पीठ पर प्रलेखन हो सके ऐसे, तीन जगत को जीतने के लिये चक्रवर्त्ती के चक्ररत्न समान ऐसे 'श्रीसिद्धचक्र भगवन्त' को मैं भावपूर्वक नमस्कार करता हूँ
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन- ३१५