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सच्चो साधना-आराधना में आप सभी आगे बढ़ो !, तपाग्नि द्वारा कर्मकाष्ठ को जलाकर-भस्मीभूत करो ! और सम्पूर्ण सुखमय सिद्धिपद-मुक्तिपद के स्वामी बनो ।
श्री तपपद का प्रयोजन चित्त की समाधि हो, समस्त कर्मों का क्षय हो, अपनी प्रात्मा के सभी गुण प्रगट हों तथा मोक्ष की प्राप्ति हो । यही तप-तपश्चर्या का मुख्य प्रयोजन है। इस भावना से जो आत्मा तप-तपश्चर्या करती है वही अल्प काल में या दीर्घ काल में सकल कर्मों का क्षय करके मोक्ष के अव्याबाध अनन्त सुख को प्राप्त करती है ।
श्री नवपद नमस्कारात्मक वर्णन
श्री नवपद का नमस्कारात्मक वर्णन क्रमशः निम्नलिखित है
१ श्रीअरिहन्तपद उत्पन्न हुए केवलज्ञान रूपी अपूर्व तेज द्वारा तेजस्वी, छत्र तथा चामर आदि पाठ प्रातिहार्यों से युक्त ऐसे उत्तम सिंहासन पर बिराजमान हुए, उत्तम प्रकार के धर्मोपदेश द्वारा सज्जनों को आनन्द उत्पन्न करने वाले, ऐसे 'श्रीअरिहन्त भगवन्तों' को मेरा सर्वदा नमस्कार हो ।
भीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-३१३