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पापों, दोषों, भूलों इत्यादि का सुयोग्य गम्भीर ज्ञानी गुरु महाराज के पास प्रायश्चित्त लेकर शुद्ध पवित्र होते है ।
८. विनय तप से प्रहंभाव यानी मान अभिमान का विनाश होता है ।
६. वैयावच्च तप से - स्वार्थवृत्ति पर अंकुश आता है, और परोपकारवृत्ति जागृत होती है। आत्मा सेवा भक्ति बहुमान से सर्वोच्च स्थिति प्राप्त कर सकता है ।
१०. स्वाध्याय तप से कर्म की निर्जरा होती है, वैराग्य और ज्ञान की वृद्धि होती है, मन, वचन और काया की एकाग्रता बढ़ती है, मन की ध्यानयोग और समतायोग सिद्ध कर शास्त्र में कहा है कि
शुद्धि होती है तथा सकते हैं । इसलिये
'स्वाध्याय समो तवो नत्थि' ।
अर्थात् स्वाध्याय के समान अन्य श्रेष्ठ तप नहीं है ।
११. ध्यान तप से - चित्त की चंचलता धीरे-धीरे चली जाती है । कुसंकल्प- कुविकल्प का जोर भी धीरे-धीरे घटता है ।
१२. कायोत्सर्ग तप से - काया ( देह - शरीर ) पर का ममत्व घटता है । सुख-दुःख इत्यादि द्वन्द्वों पर विजय प्राप्त
श्री सिद्धचक्र - नवपदस्वरूपदर्शन- ३०७