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लगे हुए कर्म-रज के परमाणुओं को सदन्तर दूर करता है अर्थात् उखाड़ कर फेंक देता है । - (२०) १. अनशन तप से-पाहार संज्ञा पर काबू आता है और अंते साधक-पाराधक को अनाहारी पद प्राप्त होता है।
२. ऊनोदरी तप से-ग्राहार की गद्धि-पासक्ति घट जाती है । इससे देह-शरीर में आरोग्य स्फूर्ति रहती है ।
३. वृत्तिसंक्षेप तप से-खाने की विविध वृत्तियों पर अंकुश आ जाता है।
४. रसत्याग तप से-स्वाद वाली चीज खाने की कुटेव धीरे-धीरे दूर चली जाती है। स्वादवृत्ति को जीतने के लिये यह तप है।
५. कायक्लेश तप से-दुःख-कष्ट को सहर्ष सहन करने की शक्ति पा जाती है। सहिष्णुता गुण केलवने के लिये यह तप है।
६. संलीनता तप से-अपने जीवन में रहा हुआ अस्थिरता रूपी शल्य दूर हो जाता है। स्थिरता गुण प्रा जाता है ।
७. प्रायश्चित्त तप से-साधक अपने जीवन में किये हुए
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-३०६