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(१) आमषौषधि आदि विविध प्रकार की लब्धियाँ तप से प्राप्त होती हैं।
(२) अणिमादि अष्ट महा सिद्धियाँ तप से प्राप्त होती हैं तथा नवनिधि-निधान भी तप से प्रगट होते हैं ।
(३) अनेक प्रकार के मन्त्र तप से सिद्ध होते हैं । (४) विविध विद्याएँ तप से वश में होती हैं।
(५) तप से जिननामकर्म-तीर्थंकर पदवी, चक्रवर्ती पदवी, बलदेव, वासुदेव तथा इन्द्र-अहमिन्द्रपना आदि विश्व के सभी महान् स्थान प्राप्त होते हैं ।
(६) तप से भव-संसार परिभ्रमण की अभिवृद्धि अटक जाती है।
(७) तप से आत्मा मोक्ष के सम्मुख हो जाता है। ,
(८) तप से अति निबिड़ और निकाचित कर्मों का भी विलयीकरण-क्षय हो जाता है ।
(8) तप से कषाय, विषय और आहार आदि कम हो जाते हैं । क्रमशः उनका विनाश हो जाता है ।
(१०) तप से समता, संवर और निर्जरा की अभिवृद्धि होती है।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-३०४