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अभ्यन्तर तप के छह भेदों के सम्बन्ध में कहा है कि प्रायश्चित्त तप के दस भेद हैं। विनय तप के सात भेद हैं । वैयावच्च तप के दस भेद हैं। स्वाध्याय तप के पांच भेद हैं। ध्यान तप के चार भेद हैं तथा कायोत्सर्ग तप के दो भेद हैं। इन सब भेदों को मिलाने पर अभ्यन्तर तप अड़तीस (१०+७+१०+५+४+२=३८) प्रकार का है। बाह्यतप बारह प्रकार का और अभ्यन्तर तप अड़तीस प्रकार का, इन दोनों को मिलाने पर तपपद के पचास (१२+३८) भेद होते हैं। इन सभी भेदों का अाराधन करने के लिये आराधक महानुभाव तपपद का पचास प्रकार से विधिपूर्वक पाराधन करता है ।
श्री तपपद का वर्ग श्वेत क्यों ? तप, आत्मा का गुण है। प्रात्मा के गुण श्वेतउज्ज्वल होते हैं। जिस तरह आत्मा के गुण दर्शन-ज्ञानचारित्र श्वेत-उज्ज्वल हैं उसी तरह प्रात्मा का तप गुण भी श्वेत-उज्ज्वल ही है।
तप द्वारा प्रात्मा का कर्मरूपी मैल दूर होता है । वह कर्म रूपी मैल श्याम वर्ण का है। उसको दूर करने के लिये श्वेत वर्ण की आवश्यकता है। इसलिये तप का वर्ण श्वेत कहा है। अथवा तप में शोधक शक्ति है। शोधक शक्ति का सम्पूर्ण विकास श्वेत-उज्ज्वल वर्ण से समझा
श्रीसिदचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२६८