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________________ (४४) धर्मकथा तपगुण । (४५) प्रार्तध्यान निवृत्ति तपगुग्ण । (४६) रौद्रध्याननिवृत्ति तपगुण । (४७) धर्मध्यानचिन्तन तपगुण । (४८) शुक्लध्यानचिन्तन तपगुण । (४६) बाह्यकायोत्सर्ग तपगुण । (५०) अभ्यन्तरकायोत्सर्ग तपगुण । इस तरह तपपद के ये पचास गुण हैं । इन सभी को नमस्कार-नमन हो। श्री तपपद का आराधन श्री तपपद के पचास गुण हैं, इसलिये तपपद का पचास प्रकार से आराधन होता है । अनशन तप के दो भेद हैं। ऊनोदरी तप के दो भेद हैं। वृत्तिसंक्षेप तप के चार भेद हैं। कायक्लेश तप का एक ही भेद है । रस तप का भी एक ही भेद है। संलीनता तप के दो भेद हैं। इन सब भेदों को मिलाने पर बाह्यतप बारह (२+२+४+१+१+२= १२) प्रकार का होता है । श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२९७
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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