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________________ व्यापार का त्याग करना, मौन से वचन व्यापार का त्याग करना तथा ध्यान से अप्रशस्त मन व्यापार का त्याग करना 'कायोत्सर्ग तप' कहा गया है । 'उत्सर्ग अथवा व्युत्सर्ग इस नाम से भी यह अभ्यन्तर तप सम्बोधित होता है । यह द्रव्य और भाव दोनों भेद से दो प्रकार का है। द्रव्यकायोत्सर्ग और भावकायोत्सर्ग। उसमें द्रव्यकायोत्सर्ग के चार भेद हैं (१) गणोत्सर्ग-गण यानी गच्छ का त्याग कर जिनकल्प आदि कल्प को स्वीकारना वह 'गणोत्सर्ग' कहा गया है। (२) कायोत्सर्ग-पादोपगमन आदि अनशन व्रत स्वीकार कर, काया का त्याग करना वह 'कायोत्सर्ग' कहा गया है। (३) उपधि उत्सर्ग-उस-उस कल्पविशेष की समाचारी के अनुसार वस्त्र और पात्र आदि उपधि का त्याग करना वह 'उपधि उत्सर्ग' कहा गया है । (४) अशुद्ध भक्तपानोत्सर्ग-अशुद्ध या अधिक (ऐसे) आहार-पानी का त्याग करना वह 'अशुद्ध भक्तपानोत्सर्ग' कहा गया है। भावकायोत्सर्ग के तीन भेद हैं । श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२६२
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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