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(१) अहर्निश पूज्य गुरुमहाराज यादि के पास रहना । (२) प्रतिदिन पूज्य गुरुमहाराज आदि की इच्छा को अनुसरना ।
(३) पूज्य गुरुमहाराज आदि के लिये श्राहार- पानी लाना, इत्यादिक से प्रत्युपकार करना ।
(४) पूज्य गुरुमहाराज आदि को आहार- पानी आदि देना ।
(५) पूज्य गुरुमहाराज आदि की प्रौषधादिक से परिचर्या करनी ।
(६) श्रवसर - समय के योग्य आचरण करना ।
(७) पूज्य गुरुमहाराज आदि के सभी कार्यों को करने में तत्पर रहना ।
अन्य रीति से भी सात प्रकार का उपचार विनय है ।
१. ज्ञान, दीक्षा पर्याय और वय से अधिक ।
२. व्याधिग्रस्त साधु ।
३. नवदीक्षित शिष्य ।
श्री सिद्धचक्र - नवपदस्वरूपदर्शन- २८३