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________________ विनय तप का दूसरा भेद 'ज्ञानविनय' है । इसके पाँच भेद हैं (१) ज्ञानविनय - ज्ञान की और ज्ञानी की बाह्यसेवा - भक्ति करना वह 'ज्ञानविनय' है । (२) बहुमान विनय - अन्तरंग प्रीति करना वह 'बहुमानविनय' है । (३) भावनाविनय - ज्ञान से देखे हुए और जाने हुए पदार्थों के स्वरूप को भावना वह 'भावनाविनय' है । ( ४ ) विधिग्रहणविनय - विधिपूर्वक ज्ञान को ग्रहण करना वह 'विधिग्रहणविनय' है । (५) अभ्यासविनय - ज्ञान का अभ्यास करना वह 'अभ्यासविनय' है । विनयतप का तीसरा प्रकार चारित्रविनय है । इसके भी पाँच प्रकार हैं इन चारित्रविनय - सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहार विशुद्धि, सूक्ष्मसम्पराय और यथाख्यात चारित्र । पाँचों प्रकार के चारित्र की सहहणा यानी श्रद्धा, (काया द्वारा) स्पर्शना, आदर, पालन, और प्ररूपणा करना सो चारित्र विनय है । विनय तप का चौथा प्रकार तपविनय है जो प्रसिद्ध है । विनयतप का पाँचवाँ प्रकार उपचार तप है । इसके सात भेद हैं श्री सिद्धचक नवपदस्वरूपदर्शन - २८२
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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