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________________ के लिये पूज्य गुरुमहाराज आदि की आज्ञानुसार विधिपूर्वक विगई ग्रहण करने की और वापरने की है। . ___दूध, दही, घी, तेल, गुड़ (शक्कर) और कड़ा-पक्वान्न इन छह रसों को शास्त्रीय भाषा में विगई या विकृति कहा जाता है। ये छह लघु विगइयों के रूप में गिने जाते हैं । इनका त्याग साधक आत्माओं को यथाशक्ति करना चाहिये । मद्य, मदिरा, मक्खन एवं मांस इन चारों रसों को शास्त्रीय भाषा में महाविगइ या महाविकृति कहते हैं। इनमें तद्-तद् वर्ण के असंख्य जीव उत्पन्न होने से तथा तामसी और विकारी होने से अर्थात् तामसभाव को तथा विकार को उत्पन्न करने वाली होने से, ये सर्वथा अभक्ष्य हैं, अर्थात् त्याज्य हैं। शास्त्र में प्रतिपादित बावीश अभक्ष्यों में भी इन चारों का निर्देश किया हुआ है। इस दृष्टि से भी ये सभी सर्वथा वर्जनीय हैं। (५) कायक्लेशतप-काया को क्लेश देना अर्थात् शरीर को कष्ट देना अथवा पाये हुए काया के क्लेश को, कष्ट को समाधिपूर्वक सहन करना, सो 'कायक्लेश' कहा जाता है। आगमोक्त विधि अनुसार वीरासन, पद्मासन, पर्यकासन, गोदोहिकासन और वज्रासन आदि आसनों द्वारा देह को कसना, खुले पाँव से चलना, रक्षा द्वारा मस्तक के केशों का श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२७०
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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