________________
को तो अवश्य ही यह 'वृत्तिसंक्षेप तप' करना चाहिये । नहीं करने पर वे प्रायश्चित्त के भागी होते हैं। इस सम्बन्ध में कहा है कि"पइदियह चिय नव नवमभिग्गहं चिन्तयति मुरिणवसहा । जियंमि जहो भरिणयं पच्छितमभिग्गहाभावे ॥"
मुनिवृषभ प्रतिदिन नया-नया अभिग्रह धारण करते हैं। वे यदि अभिग्रह नहीं धार सकें तो 'जीतसूत्र' में कहा है कि वे प्रायश्चित्त के भागीदार होते हैं ।।
(४) रसत्याग तप-रस का त्याग करना, सो 'रसत्याग तप' कहा जाता है। शास्त्र में इसके सम्बन्ध में कहा है किविकृतिकृद् रसानां यत्, त्यागो यत्र विधीयते । गुर्वाज्ञां प्राप्य विकृति, गृह रणाति विधिपूर्वकम् ॥ १ ॥
विकार पैदा करने वाले रसों का त्याग जिसमें किया जाता है वह रसत्याग तप है। रस से शरीर की अस्थिमज्जादि सभी सात धातुएँ पुष्ट होती हैं। दूध, दही इत्यादि (विकृति) वस्तुओं का त्याग करना, सो रसत्याग कहा जाता है । अथवा रस यानी स्वाद का त्याग करना, वह भी रसत्याग है। ___ त्यागी साधु महात्माओं को ज्ञानादि पुष्ट आलम्बन
सि-१८
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२६६