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द्रव्य आदि से भोजन का अभिग्रह करना, उसका भी समावेश इसी में होता है। इस तप के भी चार भेद हैं(१) द्रव्य संक्षेप, (२) क्षेत्र संक्षेप, (३) काल संक्षेप, श्रौर (४) भाव संक्षेप ।
(१) द्रव्यसंक्षेप - प्रमुक प्रकार की भिक्षा मिले तो ही लेना, अन्य प्रकार की न लेना यह 'द्रव्यवृत्तिसंक्षेप' कहा जाता है ।
(२) क्षेत्रसंक्षेप - एक, दो या अमुक गृह में से या अमुक स्थल से भिक्षा मिले तो ही लेना, अन्य स्थान से न लेना यह 'क्षेत्रवृत्तिसंक्षेप' तप कहा गया है ।
(३) कालसंक्षेप - दिन के प्रथम प्रहर में, द्वितीय प्रहर में या तृतीय प्रहर आदि में नियतकाले भिक्षा मिले तो ही लेनी, अन्य काल में न लेनी यह 'कालसंक्षेप' तप है | साधु या साध्वी को मध्याह्न काल में ही गोचरी करने की है । इस अपेक्षा से प्रथम प्रहर की या पश्चात् प्रहर की गोचरी को वृत्तिसंक्षेप में गिना है ।
(४) भावसंक्षेप - प्रमुक स्थिति में रहा हुआ व्यक्ति अन्यथा नहीं लेनी यह
ही जो भिक्षा दे तो ही लेनी, 'भावसंक्षेप' तप कहा गया है ।
यह तप प्रतिदिन करने योग्य है । साधु-साध्वियों
श्री सिद्धचक्र - नवपदस्वरूपदर्शन- २६८