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कवल (कोळीया) तक का तथा स्त्री द्वारा बावीश से सत्तावीश कवल (कोळीया) तक का प्रहार करना, वह 'किंचिदूना द्रव्य ऊनोदरिका तप' कहा है ।
इस तरह द्रव्य ऊनोदरिका तप के पाँच भेद हैं । भाव ऊनोदरिका तप के सम्बन्ध में कहा है कि---
कोहाइरणमदिरां च्चाम्रो जिरणवयरणभावरणा उ प्र । भावोणोदरिया वि हु पन्नत्ता वीरायेहिं ॥ १ ॥
श्रीजिनेश्वर भगवंत के वचनों के मनन से निरन्तर क्रोधादिक का जो त्याग करना उसको श्रीवीतरागदेव ने भाव ऊनोदरिका तप कहा है ।
- ( ३ ) वृत्तिसंक्षेप तप - इसके सम्बन्ध में शास्त्र में कहा है कि-
वर्तते ह्यनया वृत्तिः, भिक्षाशनजलादिका । तस्या: संक्षेपणं कार्यं द्रव्याद्यभिग्रहाञ्चितैः ॥ १ ॥
जिससे जीवन टिक सके अर्थात् जीवन रह सके उसको वृत्ति कहा है । उसमें भोजन और जल इत्यादिक का समावेश होता है । इस वृत्ति का द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से जो संक्षेप करना वह 'वृत्तिसंक्षेप तप' कहा जाता है ।
श्री सिद्धचक्र - नवपदस्वरूपदर्शन २६७