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उक्त आठ प्रकारों में सभी प्रकार के अशन का समावेश हो जाता है। इन सभी प्रकार के प्रशनों का त्याग करने का है।
(२) पान-इसमें सभी प्रकार के पानी का समावेश होता है । पुष्प का रस, शेरडी का रस, जव का पानी, केर का पानी, कांजी का पानी, तल इत्यादि का पानी, पाटा वाले हाथ आदि का पानी, श्रीफल-चीभडा-काकडी इत्यादि फलों में रहा हुआ या उसका धोवरण पानी, बाफ् का पानी, कर्पूर प्रमुख अन्य पदार्थ द्वारा मिश्र हुअा न हो ऐसा विशुद्ध पानी, कर्पूर, द्राक्षा, एलाइची आदि स्वादिम वस्तुओं से मिश्र किया हुआ पानी, छाश की आछ, दारु, अनेक जाति के आसव, हिम, करा, बाह्यतृणादि पर रहे हुए जल बिन्दु और सर्व प्रकार के पानी इन सभी की गिनती पानाहार में होती है । उसका त्याग करने का होता है ।
(३) खादिम-जिन्हें खाने से क्षुधा (भूख) की पूर्ण शान्ति तो न हो तो भी कांइक सन्तोष मिले, ऐसी चीजों की गिनती खादिम तरीके होती है। जैसे--मूंग, चना, दाळीया, ममरा, पौंवा प्रादि सभी जाति का भुंजा हुमा धान्य । द्राक्षा, बादाम, पिस्ता, चारोळी, काजू, खजूर, खारेक, टोपरु आदि मेवा। केरी, मोसंबी, नारंगी, पपैयु, चीभईं, संतरा, दाडम, केळा, तरबूज इत्यादि पळ ।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२६२