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श्रीचारित्रपद का शुक्लव क्यों ?
आत्मा अनन्त गुणों का भण्डार है । गुण शुक्लश्वेतउज्ज्वल होते हैं, इसलिये उनमें रहा हुआा चारित्रगुण भी उज्ज्वल ही है । अर्थात् चारित्रपद का वर्ण शुक्ल - श्वेतउज्ज्वल है । इसलिये वह चारित्रवन्त जीव को उज्ज्वल कर सकता है ।
आत्मा को चारित्र की प्राप्ति मोह घटने से होती है । चारित्र और मोह परस्पर विरोधी हैं । मोह को अन्धकार की उपमा दी है । उस मोहरूपी अन्धकार को दूर करने के लिये चारित्ररूपी प्रकाश यानी उज्ज्वल वर्ण की आवश्यकता है । इसलिये चारित्रपद श्वेत - उज्ज्वल वर्ण है । सर्व प्रधान चारित्र का वर्ण सर्व प्रधान शुक्ल श्वेत कहा है, वह उचित ही है ।
चारित्रपद की भावना
चारित्र - संयम की अभिलाषी आत्मायें देवाधिदेव श्री वीतराग परमात्मा के पास चारित्रपद प्राप्ति की भावना रखती हैं और बोलती भी हैं कि - हे प्रभो ! मुझे संयम कब मिलेगा ? यही भाव लेकर कहा है 'संयम कब मिलेश सनेही प्यारा हो ?" "हे स्नेही मित्र ! मुझे संयम चारित्र कब मिलेगा ? "
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन- २४४