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शरीर में रही हुई वायु को काबू में लेने की जो क्रिया, वह 'प्राणायाम' कही जाती है। यह योग के अष्टांग पैकी चौथा अंग है।
(५) प्रत्याहार-विषयों के सन्मुख प्रवृत्ति करती इन्द्रियों को उन्मार्गगमन से रोककर सन्मार्ग में ही प्रवृत्ति कराना, 'प्रत्याहार' कहा जाता है। यह योग के अष्टांग पैकी पाँचवां अंग है।
(६) धारणा-ध्यान करने लायक आलम्बन में अपने चित्त को स्थिरपने धारण करने की क्रिया 'धारणा' कही जाती है। यह योग के अष्टांग पैकी छठा अंग है ।
(७)ध्यान-अपने ध्येय में एकाग्रपना धारण करना, सो ही 'ध्यान' है। यह योग के अष्टांग पैकी सातवाँ अंग है।
(८) समाधि-चित्त और प्राणों के ध्येय के साथ विश्व के पदार्थ मात्र का आभासरूप जो ध्यान, वह 'समाधि' कहा जाता है।
___ इस तरह अष्टांगवन्त इस योग को मोक्ष के साधन रूप होने से संयम या चारित्र भी कह सकते हैं। विश्व में समस्त व्यवहार मोक्ष के ध्येयपूर्वक ही हो जाय तो वह अवश्यमेव निश्चय में कारण बन कर आत्मा को मोक्ष में
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२४१