SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 293
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ याम, (५) प्रत्याहार, (६) धारणा, (७) ध्यान और (८) समाधि । (१) यम-अहर्निश देहरूप साधन से करने योग्य जो क्रिया, वही 'यम' कही जाती है। उसके पांच भेद हैं(१) अहिंसा यानी जीवदया, (२) सूनत यानी सत्यवचन, (३) अस्तेय यानी चोरी का त्याग, (४) ब्रह्म यानी ब्रह्मचर्य का पालन और (५) अकिंचनता यानी परिग्रहरहितपना । 'यम' योग के अष्टांग पैकी पहला अंग है । (२) नियम-जिसमें बाह्य साधन की आवश्यकता हो ऐसा जो नित्यकर्म, वह 'नियम' कहलाता है। उसके भी पाँच भेद हैं--(१) शौच यानी शुद्धि (शरीर की और मन की)। (२) संतोष यानी लोभ का त्याग। (३) स्वाध्याय यानी पठन-पाठन में प्रवृत्ति । (४) तप यानी इच्छा के निरोधपूर्वक शक्य प्रवृत्ति । (५) देवताप्ररिणधान यानी एकाग्रचित्तपूर्वक परमात्मा का चिन्तन । ये पांच नियम कहलाते हैं। 'नियम' योग के अष्टांग पैकी दूसरा अंग है। (३) करण-स्थिर आसने बैठने की जो क्रिया, वह 'करण' कही जाती है। यह योग के अष्टांग पैकी तीसरा अंग है। (४) प्राणायाम-श्वासोच्छ्वास के निरोधपूर्वक देह श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२४०
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy