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चारित्र के सत्तरह प्रकार निम्नलिखित हैं-- ___ पाँच प्रास्रवों का त्याग करना, पांच इन्द्रियों को वश में रखना, चार कषायों को जीतना और तीन गुप्तियों का पालन करना। इस प्रकार संयम के ५+५+४+३=१७ सत्तरह भेद हैं । पुनः उत्कृष्ट से संयम के सत्तर भेद 'चरणसित्तरी' और 'करणसित्तरी' नाम से भी प्रतिपादित किये हैं । वे निम्नलिखित हैं--
(१) चरणसित्तरी-'चरणसित्तरी' शब्द प्राकृत भाषा का है। उसको संस्कृत भाषा में 'चरणसप्तति' कहते हैं । साधु-मुनिराजों से अहर्निश जो पाचराय वह 'चरण' कहा जाता है। इस चरण यानी चारित्र के सत्तर (७०) भेद हैं.। उसमें प्राणातिपात विरमण-अहिंसा आदि पाँच महाव्रत, क्षमाक्षांति प्रादि दश विध यति-श्रमणधर्म, सत्तरह प्रकार का संयम, दस प्रकार की वैयावृत्य, नव प्रकार की ब्रह्मचर्य की गुप्ति, मति आदि तीन ज्ञान, बारह प्रकार का तप तथा क्रोधादि चार कषायों का जय प्राते हैं। इस तरह (५+१०+१७+१०+६+३+१२+४ = ७०) सत्तर भेद चरणचारित्र के होते हैं।
(२) करणसित्तरी-'करणसित्तरी' शब्द भी प्राकृत भाषा का है । उसको संस्कृत भाषा में 'करणसप्तति' कहते हैं। प्रयोजन प्राप्त होने पर जो किया जाय वह 'करण'
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२३३