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चारित्रों में से कौनसा चारित्र कहाँ-कहाँ पर होता है उसका संक्षिप्त वर्णन किया है।
सामायिक आदि पाँच प्रकार के चारित्र की यथासम्भव आराधना करने वाले पाँच प्रकार के निर्ग्रन्थ-मुनि हैं। उनके नाम हैं-पुलाक, बकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक । उसमें से पुलाक, बकुश और प्रतिसेवा कुशील ये तीन भेद सामायिक और छेदोपस्थापनीय चारित्र में होते हैं तथा कषायकुशोल-सामायिक, छेदोपस्थापनीय, परिहार विशुद्धि एवं सूक्ष्म सम्पराय, इन चारों चारित्र में यथायोग्य हो सकते हैं। यथाख्यात चारित्र में निर्ग्रन्थ और स्नातक ये दो ही होते हैं। इसमें इतनी विशिष्टता है कि सर्वविरति चारित्र के सभी प्रकार-भेद कर्मभूमि के क्षेत्रों में जन्मे हुए संज्ञिपञ्चेन्द्रिय मनुष्य ही प्राप्त करते हैं। देशविरति चारित्र तो संज्ञिपंचेन्द्रिय मनुष्य एवं तिर्यंच दोनों में यथायोग्य होता है। देशविरतिवन्त मनुष्यों से तिर्यंच असंख्यातगुणे हैं।
चारित्र के अन्य प्रकार
पूर्वे सामायिक आदि पाँच भेद चारित्र के प्रतिपादित किये हैं। अब चारित्र के अन्य प्रकारों-भेदों का भी प्रतिपादन करते हैं । चारित्र का दूसरा नाम है संयम । संयम
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२३२