________________
में सामायिक, पौषध प्रतिक्रमणादिक ये सब इत्वरिक सामायिक चारित्र के अन्तर्गत हैं। यह अतिचार सहित होता है और उत्कृष्ट छह मास का है।
(ii) यावत् कथिक-बावीश तीर्थंकर भगवन्तों के शासन में तथा महाविदेह क्षेत्र में सर्वदा प्रथम से ही निरतिचार चारित्र के पालन रूप बड़ी दीक्षा होती है । इसलिये यह यावत् कथिक सामायिक चारित्र निरतिचार तथा यावज्जीव-जीवन पर्यन्त का है । सामायिक चारित्र के बिना अन्य चार चारित्र का लाभ नहीं होता।
(२) छेदोपस्थापनीय चारित्र-पूर्व चारित्र पर्याय का छेद करके पुनः पंच महाव्रतों का उपस्थापन यानी आरोपण करना, वह 'छेदोपस्थापनीय चारित्र' कहा जाता है । इसके दो भेद हैं--(i) सातिचार छेदोपस्थापनीय और (ii) निरतिचार छेदोपस्थापनीय ।
(i) सातिचार छेदोपस्थापनीय-जिस मुनि ने संयम के मूलगुण का घात किया हो तो उसकी पूर्व की दीक्षापर्याय को छेद करके पुनः चारित्र उच्च राना, वह छेद प्रायश्चित्त वाला 'सातिचार छेदोपस्थापनीय चारित्र' है । ___(ii) निरतिचार छेदोपस्थापनीय-लघु दीक्षा वाले मुनि को 'श्रीदशवकालिक सूत्र' के चतुर्थ 'छज्जीवरिणयज्झयण'
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२२६