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पंचाचार का पालन करना, 'सर्वविरति चारित्र' यानी 'सम्यक् चारित्र' कहा जाता है। पंच महाव्रतधारी साधुमुनिभगवन्तों के संयम चारित्र को ही सर्वविरति चारित्र कहते हैं । इसके पाँच प्रकार अर्थात् पाँच भेद निम्नलिखित हैं
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( १ ) सामायिक चारित्र, (२) छेदोपस्थापनीय चारित्र, (३) परिहार विशुद्धि चारित्र, (४) सूक्ष्मसम्पराय चारित्र तथा ( ५ ) यथाख्यात चारित्र ।
(१) सामायिक चारित्र - 'सम' यानी राग-द्वेष रहितपना, उसका 'आय' यानी लाभ जिसमें हो जाय वह 'सामायिक चारित्र' कहा जाता है । अथवा 'सम' यानी ज्ञानदर्शन- चारित्र, उसका 'आय' यानी लाभ वह भी 'सामायिक चारित्र' कहा है । अर्थात् अनादि काल से आत्मा की विषम स्थिति वर्तती है । उसे सम स्थिति में लाने का साधन, वह सामायिक चारित्र है । सावद्य योग का त्याग, निरवद्य योगों का सेवन, श्रात्मा की जागृति, ये समस्थिति के साधन हैं । इसके दो भेद हैं (i) इत्वर कथिक और (ii) यावत् कथिक ।
(i) इत्वर कथिक - भरतादिक दस क्षेत्रों में श्राद्य और अन्तिम तीर्थंकर भगवन्त के शासन में जो प्रथम लघु दीक्षा दी जाती है वह तथा श्रावक के बारह व्रतों पैकी शिक्षाव्रत
श्री सिद्धचक्र - नवपदस्वरूपदर्शन- २२५