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रात्रिभोजनव्रत का जीवन भर पालन करने की 'भीष्म प्रतिज्ञा' है।
(९) सम्यक्चारित्र-प्रात्मा को अष्ट कर्म रूप बन्धन की बेड़ी से मुक्त करा कर स्वतन्त्रता दिलाने वाला, अपना अनंतज्ञानादि अखूट खजाना दिखाने वाला तथा मोक्ष का शाश्वत सुख प्राप्त कराने वाला 'अद्वितीय महामन्त्र' है ।
(१०) सम्यकचारित्र-जगत् में जैनधर्म का-जैनशासन का 'अद्भुत प्राधार स्तम्भ' है ।
(११) सम्यक्चारित्र-सर्व सुख का 'मजबूत मूल' है और सिद्धि का 'सच्चा सोपान' है।
(१२) सम्यक्चारित्र-पंच महाव्रतों का, दस प्रकार के यतिधर्म का, सत्तर प्रकार के संयम का, दस प्रकार की (जणनी) वैयावच्च का, नव प्रकार के ब्रह्मचर्य की गुप्ति का, तीन रत्नत्रयी का, बारह प्रकार के तप का तथा चार कषायनिग्रह का एवं चरणसित्तरी-करणसित्तरी इत्यादि गुणरत्नों का 'अमूल्य खजाना-भण्डार' है।
इस तरह सम्यक्चारित्र को अनेक उपमाओं से समलंकृत किया जाता है।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२२३