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चारित्र शब्द की व्युत्पत्ति-अर्थ
'चर्यते अनेन इति चारित्रम्' जिसके द्वारा मुक्ति की ओर गमन किया जाय, उसका नाम 'चारित्र' है । प्राकृत भाषा में 'चरित्त' शब्द आता है तथा संस्कृत भाषा में 'चारित्र' शब्द प्राता है । 'चय' और 'रिक्त' दोनों मिलकर 'चरित्त' शब्द बनता है । उसका अर्थ है-'चय' यानी संचय, एकत्र-इकट्ठा करना, अर्थात् मोक्षगमन के लायक अच्छी वस्तु को ग्रहण कर एकत्र करना तथा 'रिक्त' खाली करना, अर्थात् संसार वर्धक खराब वस्तु का त्याग करना ।
सारांश यह है कि प्रात्मा में अष्ट कर्मों के चय समूह को जो रिक्त-खाली-खत्म करता है, वह 'चारित्र' कहलाता है। इस तरह चरित्त-चारित्र शब्द का निरुक्तार्थ है।
चारित्र के पर्यायवाचक शब्द
चारित्र के पर्यायवाचक शब्द अनेक हैं ; जैसे-संयम, दीक्षा, प्रव्रज्या इत्यादि ।
चारित्रपद की महिमा चारित्रपद की महिमा अनुपम है। शास्त्रों में कहा है कि--
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२१६