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गामी ऐसे श्री तीर्थकर भगवन्त भी स्वीकारते हैं, उसका विशुद्धिपूर्वक सम्यक् पालन करते हैं, धर्मतीर्थ की स्थापना करते हुए संयम-चारित्र धर्म की मुख्यपने प्ररूपणा करते हैं, इतना ही नहीं किन्तु अनेक भव्यजीवों को चारित्र रूपी महान् रत्न अर्पण करते हैं। ___ भवसिन्धु तारक श्री तीर्थंकर भगवन्तों के सदुपदेश से षखंड के अधिपति चक्रवर्ती षट्खंड की ऋद्धि-सिद्धि को भी क्षण में तिलांजलि देकर आत्मकल्याण के पवित्र मार्ग रूप सर्वोत्तम चारित्र को अपने जीवन में अपनाते हैं; चारित्र महाराजा के सैनिक बनने में गौरव अनुभवते हैं। लोक में हड़हड़ होता हुआ और सर्वत्र तिरस्कार पामता हुआ रंक, दरिद्र या दुर्भागी भी जब चारित्र धर्म का शरण स्वीकारता है तब वह भी जन-जन का वन्दनीय और पूजनीय हो जाता है। विशुद्ध-निर्मल, अखण्ड चारित्र का पालन करने वाले पूज्य मुनिवरों के चरणों में देवलोक निवासी देव-देवेन्द्र तथा सुर-असुरेन्द्र भी नमन करते हैं और आनन्द का अनुभव करते हैं।
केवल भोजन की इच्छा से भी द्रव्यच रित्र को ग्रहण करने वाला रंक-भिखारी मृत्यु पाकर चारित्र के प्रभाव से महाराजा सम्प्रति हुआ । संसारसागर से तारने वाला
और मोक्ष के शाश्वत सुख को दिलाने वाला यह महाप्रभावशाली चारित्र अवश्यमेव आदरणीय है।
श्रीसिद्धचक्र-नापदस्वरूपदर्शन-२१८