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________________ चारित्र द्वारा केवलज्ञान प्राप्त करने वाले महापुरुष जब साधु-मुनि का वेश ग्रहण करते हैं, तब इन्द्रादिक देव उन्हीं को वन्दन-नमस्कार करते हैं । यही साधु-मुनि वेश की विशिष्टता एवं पूज्यता है । संसारी जोव चाहे कितना ज्ञानी हो तो भी वह जब साधु-मुनि का वेश ग्रहण करता है तब ही पूज्य बनता है। इसलिये मोक्ष में जाने की अभिलाषावन्त महानुभावों को अवश्य ही साधु-मुनि वेश रूपी द्रव्यचारित्र स्वीकारना चाहिये तथा भावचारित्र की ओर लक्ष्य केन्द्रित कर, प्रात्मा के विशुद्ध अध्यवसायों द्वारा प्रष्ट कर्मों का क्षय करने के लिये, केवलज्ञान प्राप्त करने के लिये और मोक्ष में जाने के लिये अहर्निश संयम में अप्रमत्त विशेष उद्यमवंत-प्रयत्नशील रहना चाहिये । . 'चारित्र बिना आत्मा की मुक्ति नहीं' यह श्री जैनशासन का, जैनधर्म का अबाधित नियम है। इसलिये गृहस्थ वेश या अन्य वेश में रहे हुए भव्यात्मा भी सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र रूप रत्नत्रयी की विशुद्ध आराधना से केवलज्ञान प्राप्त होने के पश्चाद् भी जो दो घड़ी (४८ मिनिट) से अधिक आयुष्य शेष हो तो वे सभी द्रव्यचारित्र यानी साधुवेश स्वीकार किये बिना नहीं रहते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि चारित्र मोक्षप्राप्ति का अद्वितीय-अजोड़ राजमार्ग है। इस सर्वविरति रूप चारित्र-संयम को तद्भव मोक्ष श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२१७
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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