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________________ सकती। संयम-चारित्र से ही भव्यजीवों को पूर्ण फल रूप मोक्ष मिलता है, मुक्ति प्राप्त होती है। . शास्त्र में सर्वविरति चारित्र के दो भेद प्रतिपादित किये गये हैं-(१) द्रव्यचारित्र और (२) भावचारित्र । द्रव्यचारित्र में साधु के वेश की तथा क्रिया की मुख्यता है तथा भावचारित्र में आत्मा के विशुद्ध अध्यवसायों अर्थात् विशुद्ध परिणामों की मुख्यता है । द्रव्यचारित्र वाले को भी जब तक भावचारित्र रूप आत्मा के विशुद्ध अध्यवसाय-परिणाम न आ जायें तब तक उसे भी मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती। भावचारित्रवन्त को भी परम्पराए बढ़ते-बढ़ते विशुद्ध अध्यवसाय अर्थात् आत्मा के विशुद्ध परिणाम मोक्ष में पहुँचाते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि मोक्ष में जाने के लिये भावचारित्र ही अन्तिम मार्ग है। द्रव्यचारित्र बिना भी मात्र भावचारित्र से श्री ऋषभदेव भगवन्त की माता मरुदेवी मोक्ष गई, यह तो एक अपवाद मार्ग है । राजमार्ग तो यही है कि द्रव्यचारित्र द्वारा भावचारित्र प्राप्त करने वाले को मोक्ष मिलता है । इसलिये तो द्रव्यचारित्र भी भावचारित्र के लिये मुख्य कारण-हेतु कहा है। अनेक भव्यजीवों ने द्रव्यचारित्र द्वारा भावचारित्र पाकर मोक्ष प्राप्त किया है। अन्य वेश में रहकर भाव श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२१६
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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