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लिये है। भव्यजीवों को मोक्ष में पहुँचने के लिये सीधा
और मुख्य मार्ग सर्वविरति का है, किन्तु वह मार्ग अति क्लिष्ट और कठिन होने से उसमें प्रवृत्ति करने वाले अल्प जीव होते हैं। सर्वविरति मार्ग में जाने के लिये जो असमर्थ हैं, उनके लिये प्रारम्भ में देशविरति मार्ग दिखाया है। इस मार्ग में चलने वाले जीवों को भी अन्ततः मुख्य मार्ग रूप सर्वविरति धर्म में अवश्य पाना ही पड़ता है । कारण यह है कि सर्वविरति चारित्र बिना प्रात्मा की कभी मुक्ति नहीं हो सकती है। इससे यह सिद्ध होता है कि जिसकी मोक्ष में जाने की भावना है उसे अवश्य ही सर्वविरति चारित्र स्वीकारना चाहिये अर्थात् संसार को तजकर-छोड़कर पारमेश्वरी प्रव्रज्या-भागवती दीक्षा लेनी चाहिये। ___ सागर के जल में तैर कर सामने दूसरे पार किनारे पहुँचने की पूर्ण रुचि हो, जल में तैरने की कला भी प्राती हो, लेकिन जब तक जल में प्रवेश कर अपने हाथपाँव चलाकर तैरने की क्रिया न की जाय, तब तक दूसरे किनारे पर नहीं पहुँच सकते। इस तरह अपने को भले सम्यग्दर्शन से संसार असार-अकारा लगता हो, उससे छुटकारा किस तरह हो उसका ज्ञान भी हो, किन्तु जब तक अपन आचरण-क्रिया नहीं करेंगे तब तक सम्पूर्ण फल मिलना मुश्किल है अर्थात् प्रात्मा को मुक्ति नहीं मिल
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२१५