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दुर्लभ है। जोवाजावादि तत्त्वों में से त्याग करने योग्य, ग्रहण करने लायक तथा प्रात्मा को हितकारी और अहितकारी तत्त्व कौन-कौन से हैं तथा कौनसी क्रिया अपने लिए हितकर या अहितकर है इत्यादि भले जान सकें, समझ भी सकें, लेकिन जब तक सम्यक्ज्ञानवन्त आत्मा उस ज्ञान को अपने आचरण में नहीं लाता है तब तक वह भी मोक्ष के मार्ग में आगे नहीं बढ़ सकता है । 'ज्ञान-क्रियाभ्यां मोक्ष.' ज्ञान और क्रिया द्वारा ही मोक्ष की प्राप्ति होती है । इसलिये ज्ञान द्वारा वस्तु को जानने के पश्चात् आचरण भी तदनुरूप ही होना चाहिए । 'विशुद्ध आचरण ही चारित्र है' आत्मा की शुद्ध आचरण में प्रवृत्ति चरण-चारित्र है और अशुद्ध आचरण का त्याग विरति है।
आत्मा में सम्यग्दर्शन द्वारा मोक्षमार्ग की श्रद्धा होती है, सम्यग्ज्ञान द्वारा आत्मा मोक्षमार्ग को जान सकता है और सम्यग्चारित्र द्वारा मोक्ष में जाने के लिये प्रवृत्ति करता है । ज्ञानी भगवन्तों ने भव्यजीवों को मोक्ष में जाने के लिये दो मार्ग दिखाये हैं - (१) देशविरति और (२) सर्वविरति । अशुद्ध आचरण का अंशत: अंशत: त्याग करना वह देशविरति है तथा अशुद्ध प्राचरण का सम्पूर्ण सर्व प्रकार से त्याग करना वह सर्वविरति है। देशविरति गृहस्थों के लिये है और सर्वविरति साधुओं (मुनियों) के
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२१४