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[८] श्रीचारित्रपद
ॐ नमो चरित्तस्स) पाराहि-अखंडिग्र-सक्किअस्स , नमो नमो संजम-वीरिप्रस्स ॥
卐 सुसंवरं मोहनिरोधसारं, पंचप्पयारं विगयाइयारं । मूलोतराणेगगुणं पवित्तं, पालेह निच्चपि हु सच्चरित्तं ॥१॥
व्रत५-धर्म१०-संयमा१७स्विह,
वैयावृत्त्यानि१० गुप्तयो नव वै । ज्ञानादि३ त्रिकमिह तपः१२,
क्रोधादि४ निरोधनं च चारित्रम् ॥ १॥
श्रीचारित्रपद का स्वरूप
जिस आत्मा ने सम्यग्ज्ञान प्राप्त किया, उसे सत्यासत्य का भान हुअा, हेय ज्ञेय और उपादेय की भी समझ हुई, लेकिन उस ज्ञान को अपने आचरण में लाना अति
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२१३