________________
जागृत रहती है। सत्यासत्य का उसको भान रहता है। वह प्रत्येक प्रवृत्ति कर्मों से और भव से मुक्त होने के लिये करता है। वह समझता है कि सम्यग्ज्ञान की मुख्य परिणति-परिणाम समस्त वस्तु को जनाने वाली है। जिसका विशिष्ट लक्षण जानपनारूप भाव है। निर्मल मतिज्ञानादि उसके पाँच प्रकार हैं। मोक्ष के साधन रूप जिसका लक्षण है। वह प्रतिदिन स्याद्वाद-अनेकान्तवाद को प्रतिपादन करने वाला है । जीवाजीवादि नव तत्त्वों से रंगा हुआ है। भेद और अभेद का सूचन करने वाला है। सविकल्प और निर्विकल्प पदार्थों का ज्ञापन करने वाला है तथा सर्व संशय का छेदन करने में समर्थ यह सम्यग्ज्ञान अद्वितीय है ।
श्री ज्ञानपद की उपासना से भव का निस्तार
शास्त्र में समस्त क्रियाओं के मूल स्वरूप वर्णवाती श्रद्धा को भी निर्मलादि बनाने में सहायक सम्यग्ज्ञान ही . है। जिनशासन में सम्यग्ज्ञान की मत्यादि पाँच ज्ञानभेद से प्रसिद्धि है। इन पाँच ज्ञानों में मतिपूर्वक का श्रु तज्ञान अत्यन्त ही उपकारक है।
___ जिस तरह मतिज्ञान श्रुतज्ञान को स्फुट बनाने वाला है, उस माफिक श्रुतज्ञान भी मतिज्ञान को सुसंस्कारित
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२१०