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________________ शान्ति के लिये ही है। इसलिये ज्ञान शुक्ल है और शुक्ल ध्यान आत्मा का ध्येय है । __ उपर्युक्त कारणों से सम्यग्ज्ञान पद का वर्ण श्वेतशुक्ल, उज्ज्वल-सफेद-धोळा माना है । श्रीज्ञानपद का वर्णन श्रीसिद्धचक्र-नवपद पैकी सप्तम श्रीज्ञानपद का वर्णन करते हुए 'श्रीनवपद प्रकरण' में कहा है कि--- सम्वन्नुपरणीयागम,-भरिणयारणजहठ्ठियारणतत्तारणं । जो सुद्धो अवबोहो, तं सन्नाणं मह पमारणं ॥ ७५ ।। __सर्वज्ञ प्रणीत पागम में प्रतिपादित किये हुए यथास्थित तत्त्वों का जो शुद्ध अवबोध है वह सम्यग्ज्ञान मेरे प्रमाण है ।। ७५ ।। जेणं भख्खाभख्खं, पिज्जापिज्ज अगम्म अवि गम्मं । किच्चा किच्चं नज्जइ, तं सन्नाणं मह पमारणं ॥ ७६ ।। जिसके द्वारा भक्ष्य और अभक्ष्य अर्थात् भक्ष्याभक्ष्य, पेय और अपेय अर्थात् पेयापेय, गम्य और अगम्य अर्थात् गम्यागम्य तथा कृत्य और अकृत्य अर्थात् कृत्याकृत्य ज्ञात है वह सम्यग्ज्ञान मेरे प्रमाण है ।। ७६ ।। सि-१४ श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-२०५
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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