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प्रश्न-पत्र कश्चिद् वक्ति' इधर कोई कहते हैं कि मत्यादिक आप-आपके प्रावरण के क्षयोपशम से प्रगट होते हैं, वे सर्वथा क्षय होने पर अति विशुद्ध ही होते हैं ?
उत्तर-जैसे अति घन पटल में सूर्य का प्रकाश कटकट आवरण विवर में प्रवेश करता हुआ घटादिक को प्रकाशता है, वैसे केवलज्ञानावरण होते हुए मत्यावरणादिक का क्षयोपशम (होते हुए) कांइक प्रकाश करता है वे मत्यादिकज्ञान कहे जाते हैं तथा सर्वावरण दूर हो जाने पर सूर्य की भाँति केवलज्ञान ही कहा जाता है, लेकिन अनेरे ज्ञान नहीं कहे जाते हैं ।
(२) दूसरा मत है कि मत्यादि पाँच ज्ञान हैं । उनको पाच्छादित करने वाले भी पाँच प्रकार के ज्ञानावरणीय कर्म हैं। जब उन कर्मों का विनाश होता है तब मति आदि पांचों ज्ञान प्रगट होते हैं। परन्तु पंचम केवलज्ञान के आगे वे मत्यादि चारों ज्ञान निरर्थक होने से उनकी विवक्षा नहीं की है। इस विषय में शास्त्र में केवलज्ञान को सूर्य की उपमा दी गई है और मतिज्ञानादि चारों ज्ञानों को चन्द्र की, ग्रह की, नक्षत्र की एवं तारा की उपमा दी गई है। कारण यह है कि जब सूर्य का उदय होता है तब उसके प्रकाश के आगे भले चन्द्र आदि का प्रकाश हो तो भी वे सभी निरर्थक होने से उनकी गिनती
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१६६