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________________ से भी अधिक मनोवांछित पूरक है । (७) सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन एवं सम्यग्चारित्र के पूर्ण सहकार से प्रात्मा में लगे हुए कर्मों के बन्धन को हटाने वाला, स्वतन्त्र बनाने वाला, सचिदानंद स्वरूप मोक्ष का शाश्वत सुख दिलाने वाला और सद्धर्म के पञ्चपरमेष्ठिरूप 'अजोड़ महामन्त्र' के समान है। (८) मोक्ष में भी आत्मा के साथ सदा काल रहने वाली यही सम्यग्ज्ञानरूप केवलज्ञान 'शाश्वत ज्योति' है । (६) द्वादशांगी रूपी आगम आदि शास्त्र-भंडार के ताले खोलने के लिये सम्यग्ज्ञान 'अलौकिक कुञ्जी' है तथा उनको सीखने-पढ़ने के लिये 'असाधारण धर्मशास्त्र' है। (१०) किसी से भी न चुराई जा सके, आत्मा की ऐसी 'सच्ची धनमुंडी' सम्यग्ज्ञान है । इस तरह सम्यग्ज्ञान की अनेक उपमाएँ हैं । ज्ञान सम्बन्धी विशिष्ट विचारणा ज्ञान सम्बन्धी विशिष्ट विचारणा में दो मत हैं । (१) एक मत का कहना है कि 'एक केवलज्ञान ही है।' कारण यह है कि आत्मा में यह एक केवलज्ञान ही है । उस पर केवलज्ञानावरणीय कर्म का प्रावरण पड़ा है। उससे वह श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१६४
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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