________________
ज्ञान की अनेक उपमाएँ शास्त्र में सम्यग्ज्ञान की अनेक उपमाएँ प्रतिपादित की गई हैं । जैसे
(१) सम्यग्ज्ञान "दिव्य चक्षु' के समान है। प्रात्मा चर्मचक्षु द्वारा मात्र बाह्य पदार्थों को देख सकती है, किन्तु सम्यग्ज्ञान रूपी दिव्य चक्षु (नयन-नेत्र-प्रांख) द्वारा बाह्य तथा अतीन्द्रिय दोनों पदार्थों को देख सकती है।
(२) सम्यग्ज्ञान 'अद्वितीय सूर्य' के समान है। जैसे सूर्य के प्रकाश से अंधकार का विनाश होता है, वैसे ही सम्यग्ज्ञान रूपी अद्वितोय सूर्य से जीवों के अज्ञानरूपी अन्धकार का विनाश होता है ।
(३) सम्यग्ज्ञान 'अपूर्व भूषण' के समान है। जैसे अलंकार-आभूषण द्वारा आत्म सम्बद्ध देह की शोभा है, वैसे ही प्रात्मा की अनुपम शोभा रूप सम्यग्ज्ञान 'अपूर्व भूषण' के समान है।
(४) सम्यग्ज्ञान प्रात्मा के अनंत गुणों पैकी का एक 'अनुपम महान् गुरण' है।
(५) सम्यग्ज्ञान आत्मा का 'अद्भुत खजाना' है । (६) सम्यग्ज्ञान कल्पवृक्ष और चिन्तामणि रत्नादिक
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१६३