SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 245
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ होता है। इसलिये उसे 'अव्याघात' जानना। इस ज्ञान वाले को किसी प्रकार की पीड़ा, बाधा, दुःख आदि नहीं होते हैं इसलिये 'अव्याबाध' भी जानना । (५) केवल यानी अनंत । केवलज्ञानी आत्मा अपने केवलज्ञान द्वारा रूपी या अरूपी सर्व द्रव्यों को जो विश्व में अनंतां हैं, सभी को जानते हैं। इसलिये इसे 'अनंत' कहा गया है तथा यह केवलज्ञान अनंत काल तक रहने वाला है। इसलिये भी 'अनंत' कहा जाता है । मत्यादि चार ज्ञानों का काल सादि सान्त है लेकिन केवलज्ञान का काल सादि अनंत है। कारण कि यह ज्ञान प्राप्त होने के पश्चात् कभी भी किसी काल में जाता नहीं है। मोक्ष में भी यही केवलज्ञान आत्मा के साथ में ही रहने वाला है। सम्यग्ज्ञान के मुख्य पांच भेद पैकी यह केवलज्ञान पाँचवाँ भेद है । पाँचों ज्ञान मिलकर के सम्यग्ज्ञान के एकावन भेद होते हैं-- (१) मतिज्ञान के भेद(२) श्रु तज्ञान के भेद १४ (३) अवधिज्ञान के भेद(४) मनःपर्यवज्ञान के भेद(५) केवलज्ञान श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१९२
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy