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ज्ञानावरणीय कहा जाता है। सम्यग्ज्ञान के मुख्य पाँच भेद पैकी दूसरा भेद यह श्रु तज्ञान है।
(३) अवधिज्ञान
आत्मा को इन्द्रियों की अपेक्षा बिना रूपी द्रव्य का मर्यादापूर्वक जो ज्ञान होता है, वह 'अवधिज्ञान' कहा जाता है। अवधिज्ञान के दो भेद हैं। (१) भवप्रत्ययिक और (२) गुणप्रत्ययिक।
(१) भवप्रत्ययिक-उस उस भव की अपेक्षा से होने वाला ज्ञान, 'भवप्रत्ययिक अवधिज्ञान' है, जो सम्यक्त्ववंत देवता तथा सम्यक्त्ववंत नारकी जीवों को होता है ।
(२) तपश्चर्या प्रमुख गुण की अपेक्षा से होने वाला ज्ञान, 'गुणप्रत्ययिक' या 'लब्धिप्रत्ययिक' अवधिज्ञान है ।
गुणप्रत्ययिक अवधिज्ञान के छह भेद प्रतिपादित किये गए हैं। क्रमशः वे इस तरह हैं --
(१) अनुगामी-चक्षु-आँख की भाँति जहाँ जाय वहाँ पर भी साथ ही रहने वाला ज्ञान, 'अनुगामी अवधिज्ञान' है।
(२) अननुगामी-सांकल से बंधे हुए दीपक-दीवा की भाँति, जहाँ उत्पन्न हुअा अवधिज्ञान वहीं पर रहे अन्यत्र
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१८२