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(१६) पूर्वश्रु त-उत्पादपूर्वादिक । एक पूर्व का ज्ञान, वह 'पूर्वश्रुत' है।
(२०) पूर्वसमासश्रु त-दो-तीन का ज्ञान तथा चौदह पूर्व का ज्ञान, वह 'पूर्वसमासश्रु त' है ।
इस तरह श्रु तज्ञान के बीस भेद भी होते हैं । द्रव्य से-श्रु तज्ञानी उपयोगवंतथको सर्व द्रव्य जाने-देखे ।
क्षेत्र से-श्र तज्ञानी उपयोगवंतथको सर्व क्षेत्र लोकालोक जाने-देखे । ___ काल से-श्रु तज्ञानी उपयोगवंतथको सर्व काल जानेदेखे।
भाव से-श्रु तज्ञानी उपयोगवंतथको सर्व भाव जानेदेखे।
श्रवण से जो ज्ञान होता है, वह मुख्यपने श्रुतज्ञान है। इसमें श्रोत्रेन्द्रिय और मन का सहकार मुख्य है । मतिज्ञान का क्षयोपशम जैसा होता है वैसा ही श्रु तज्ञान होता है। अन्य चार ज्ञानों से भी श्रु तज्ञान की विशेषता विशेष है। कारण यही है कि चार ज्ञान वाले भी श्रु तज्ञान के द्वारा ही लोकों का उपकार कर सकते हैं । अर्थात् केवलज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और अवधिज्ञान ये तीनों
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१८०