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(१०) प्रतिपत्तिसमासश्रत - दो से लगाकर सभी मार्गरणा का ज्ञान, वह 'प्रतिपत्तिसमासत' है ।
(११) अनुयोगश्रुत - 'संत - पय- परुवरणया ० ' इत्यादिक अनुयोग पैकी एक का ज्ञान, वही 'अनुयोगश्रुत' है ।
अनुयोग को
(१२) अनुयोगसमासश्रुत - दो-तीन जानना, वह 'अनुयोगसमासश्रुत' है ।
(१३) प्राभृतप्राभृतश्रुत - प्राभृत का अन्तरवत्ति अधिकार विशेष, वह 'प्राभृतप्राभृतश्रुत' है ।
(१४) प्राभृतप्राभृतसमासश्रुत - दो-तीन प्राभृतप्राभृत का ज्ञान, वह 'प्राभृतप्राभृतसमासश्रुत' है ।
(१५) प्राभृतश्रुत - वस्तु का अन्तरवत्ति अधिकार, वह 'प्राभूतश्रुत' है ।
(१६) प्राभृतसमासश्रुत - दो-तीन प्राभृतों का ज्ञान, वह 'प्राभृतसमासश्रुत' है ।
( १७ ) वस्तुश्रुत - पूर्वान्तरवत्ति अधिकार, वह 'वस्तुश्रुत' है।
(१८) वस्तुसमासभूत-दो-तीन का ज्ञान, वह 'वस्तुसमासश्रुत' है ।
श्री सिद्धचक्र - नवपदस्वरूपदर्शन - १७६