________________
'पर्यायसमासश्रुत' है।
(३) अक्षरशु त-प्रकारादि जो लब्ध्यक्षर, वह 'अक्षरभु त' है।
(४) अक्षरसमासश्रु त-दो, तीन अक्षर का जानना, वह 'अक्षरसमासश्रुत' है।
(५) पदश्रु त-'अर्थपरिसमाप्तिः पदम्' या 'विभक्त्यन्तं पदम्' इस तरह कहा जाता है, लेकिन यह पद इधर लेने का नहीं है। अपने तो जैनागम के श्रीपाचारांगसूत्र में अठारह हजार (१८०००) पद कहे हैं। उन पैकी एक पद का ज्ञान, वही 'पदश्रु त' है।
(६) पदसमासश्रु त-पदश्रु त में बताये हुए पदों के समुदाय-अनेक पदों का ज्ञान, वह 'पदसमासश्रुत' है ।
(७) संघात त-'गइ इंदिए अ काए.' इत्यादि गाथा में कहे हुए गत्यादिक का जो एकदेश (देवगत्यादिक) की मार्गणा का ज्ञान, वह ‘संघातश्रुत' है ।
(८) संघातसमासश्रु त-गत्यादिक के दो-तीन मार्गणा का ज्ञान, वह 'संघातसमासश्रु त' है ।
(8) प्रतिपत्तिश्रु त-गत्यादिक एक द्वारे जीव की मार्गणा का ज्ञान, वह 'प्रतिपत्तिश्रु त' है।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१७८