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दृष्टिवंत जीव की जो विचारणा, वही 'दृष्टिवादोपदेशिकी संज्ञा' होती है।
(४) असंज्ञिश्रुत-मनरहित जीव का इन्द्रियों से उत्पन्न होने वाला श्रुत, 'असंजिश्रुत' कहा जाता है।
(५) सम्यक्श्रुत-सम्यग्दृष्टिवंत व्यक्ति द्वारा ग्रहण किया हुअा श्रुत, 'सम्यक्श्रुत' कहलाता है ।
(६) मिथ्याश्रुत-मिथ्यादृष्टिवन्त व्यक्ति द्वारा ग्रहण किया हुआ श्रु त, 'मिथ्याश्रुत' कहा जाता है । . (७) सादिश्रुत-आदि वाला जो श्रुत, वह 'सादिश्रुत' कहा जाता है।
(E) अनादिश्रुत-आदि बिना का जो श्रत है, वह 'अनादिश्रुत' कहलाता है।
(६) सपर्यवसितश्रुत-सान्त अर्थात् अन्तवाला जो श्रुत है, वह 'सपर्यवसितश्रुत' कहा जाता है ।
(१०) अपर्यवसितश्रुत-अनंत अर्थात् अन्त बिना का जो श्रुत है, वह 'अपर्यवसितश्रुत' कहा जाता है ।
(११) गमिकश्रुत-समान पाठ वाला जो श्रुत है, वह 'गमिकश्रुत' कहलाता है। (यह श्रत प्रायः दृष्टिवाद में है)।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१७६