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भाव से-मतिज्ञानवाले सर्व भाव जाने, परन्तु देखे नहीं। मतिज्ञान का विरोधी मतिअज्ञान है । जो मतिज्ञानावरणीय कहा जाता है। सम्यग्ज्ञान के मुख्य पाँच भेद पैकी प्रथम--पहला भेद यह मतिज्ञान है ।
(२) श्रुतज्ञान
आत्मा को इन्द्रिय और मन के सहकार से शब्दार्थ की पर्यालोचना वाला (इस शब्द का यह अर्थ है, ऐसा) जो ज्ञान है, वही 'श्रुतज्ञान' कहा जाता है। इसके चौदह भेद शास्त्र में प्रतिपादित किये गए हैं। वे भेद क्रमशः निम्नलिखित हैं---
श्रुतज्ञान के चौदह भेद (१) अक्षरश्रुत-अक्षरों से अभिलाप्य भावों को यानी कथनीय पदार्थों को प्रतिपादन करने में मुख्य भाग भजने वाला जो श्रुत, वही 'अक्षरश्रुत' कहलाता है। उसके तीन भेद हैं
(क) संज्ञाक्षर-अठारह प्रकार की लिपि । हंसलिपि आदि।
(ख) व्यंजनाक्षर-अ से ह पर्यन्त के उच्चार्यमाण बावन अक्षर ।
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१७४