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(२) श्रबहुग्राही - 'कोई प्रव्यक्तपने वार्जित्र बज रहा है' इतना ही सामान्य जाने, न कि विशेष रूप में, वह 'बहुग्राही मतिज्ञान' कहा जाता है ।
(३) बहुविधग्राही - कोई बहुमंदत्वादि बहुधर्मोपेत जाने, वह 'बहुविधग्राही मतिज्ञान' कहा गया है ।
(४) प्रबहुविधग्राही - कोई एक दो पर्यायोपेत जाने, वह 'बहुविधग्राही मतिज्ञान' कहलाता है ।
(५) क्षिप्रग्राही - कोई जल्दी जाने, वह 'क्षिप्रग्राही मतिज्ञान' कहा जाता है ।
(६) क्षिप्रग्राही - कोई विचार करते-करते लम्बे समय में जाने, वह 'प्रक्षिप्रग्राही मतिज्ञान' कहा जाता है ।
( ७ ) निश्रितग्राही - जैसे ध्वजा से मन्दिर जाने वैसे कोई लिंग निश्राए जाने, वह 'निश्रितग्राही मतिज्ञान' कहलाता है ।
(८) अनिश्रितग्राही - कोई लिंग निश्रा बिना जाने, वह निश्रितग्राही मतिज्ञान' कहा जाता है ।
( ९ ) संदिग्धग्राही - कोई संशय सहित जाने, उसे 'संदिग्धग्राही मतिज्ञान' कहा है।
श्रीसिद्धचक्र - नवपदस्वरूपदर्शन - १७२