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________________ संस्कार वही 'वासना' है जो संख्यात-असंख्यात काल पर्यंत भवान्तर में भी रह सकते हैं । (३) स्मृति-प्रात्मा में यही संस्कार दृढ होने के पश्चात् कालान्तर में ऐसे किसी भी पदार्थ के दर्शनादिक कारण से पूर्व के संस्कार जागृत होने पर 'यह वही है जो कि मैंने पूर्व प्राप्त की थी, देखी थी या अनुभवी थी।' इत्यादि रूप जो ज्ञान होता है, वह 'स्मृति ज्ञान' कहा जाता है । जाति स्मरण ज्ञान का भी समावेश इसी स्मृति ज्ञान में होता है । __धारणा में पाँच इन्द्रियों और मन का सहकार होता है, इसलिये धारणा के भी छह भेद कहे हैं। (१)व्यंजनावग्रह के चार भेद, (२) अर्थावग्रह के छह भेद, (३) ईहा के छह भेद, (४) अपाय के छह भेद, (५) धारणा के छह भेद । __इस तरह मतिज्ञान के अट्ठाईस (२८) भेद होते हैं। उनके भी बहुग्राही इत्यादि अनेक भेद शास्त्र में प्रतिपादित किये गए हैं । वे भेद क्रमशः इस माफिक हैं--- (१) बहुग्राही-बजते हुए अनेक वाजिंत्रों का शब्द एक साथ में सुनकर 'यहाँ इतनी भेरी और इतने शंख बजते हैं' इस तरह सभी भिन्न-भिन्न शब्द को ग्रहण करे, वही 'बहुग्राही मतिज्ञान' कहलाता है । श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१७१
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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