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(१) भविष्यत् काल के विषय को जनाने वाली 'मति' है।
(२) वर्तमान काल के पदार्थ को जनाने वाली 'बुद्धि' है।
(३) भूतकाल की एवं भविष्यत् काल की वस्तु को जनाने वाला 'विज्ञान' है । मति, बुद्धि एवं विज्ञान ये तीनों शब्द ज्ञान के पर्यायवाची हैं।
श्रीज्ञानपद का स्वरूप
विश्व में अनेक प्रकार के पदार्थ हैं। उनमें कितने ही पदार्थ हेय यानी त्यजने योग्य, कितने ही पदार्थ ज्ञेय यानी जानने योग्य और कितने ही पदार्थ उपादेय यानी आदरनेस्वीकारने योग्य है। यह सब ज्ञान से पहिचाना जाता है। ज्ञान के बिना मनुष्य पशु के समान है। आत्मा की कौन सी प्रवृत्ति हितकारी और कौन सी प्रवृत्ति अहितकारी है; यह जानने के लिये आत्मा को सच्चे ज्ञान की आवश्यकता है।
विश्व में दो प्रकार की वस्तुयें हैं। एक यथार्थ और दूसरी अयथार्थ । यथार्थ यानी वास्तविक और अयथार्थ यानी अवास्तविक-मिथ्या । सत्यवस्तु का सत्यज्ञान यथार्थ
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१६४