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________________ कराने वाले आप ही हो। सुदेव, सुगुरु और सुधर्म की सही रूप में सम्यग् श्रद्धा कराने वाले आप ही हो । जीवाजीवादि नव तत्त्वों की जानकारी संक्षेप से या विस्तार से कराने वाले आप ही हो । भव का निस्तार और शाश्वत सुख की प्राप्ति कराने वाले भी (सम्यग्ज्ञान एवं सम्यग्चारित्र के सहयोग से) आप ही हो। जब तक आपके प्रति हमारा पूर्ण विश्वास न हो, हमारो आत्मा आपके प्रति सम्यग् श्रद्धावंत न हो और हमारे हृदयमन्दिर में आपका निवास केवल व्यवहार से ही नहीं किन्तु निश्चय से न हो, तब तक हम हमारी आत्मा में कैसे श्रद्धान कर सकें कि हमारी मुक्ति अवश्यमेव होगी अर्थात् हमारा मोक्ष निश्चित होगा। जैसे श्रमण भगवान महावीर स्वामी परमात्मा के परम भक्त मगध के सम्राट श्री श्रेणिक महाराजा और बालब्रह्मचारी श्री नेमिनाथ भगवान के परम भक्त द्वारिकानगरी के श्रीकृष्ण महाराजा, दोनों को अपने हृदयमन्दिर में आपकी स्थापना शाश्वत हुई थी, वैसे ही हमारे हृदयमन्दिर में आपकी स्थापना शाश्वती सदा के लिये हो। सम्यकत्ववंत संसारी जीव की विचारणा समकित दृष्टि जीवड़ा, करे कुटुम्ब परिपाल । अन्तर से न्यारा रहे, धाय खिलावत बाल । सि-११ श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१५७
SR No.002288
Book TitleSiddhachakra Navpad Swarup Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1985
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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