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(१२) सम्यक्त्ववंत व्यक्ति की अभ्यन्तर प्रवृत्ति प्रायः आत्मानुलक्षी होकर मोक्षमार्ग का लक्ष्यबिन्दु केन्द्रित होता है।
(१३) 'तमेव सच्चं निःशंकं जं जिणेहिं पवेइग्रं' । ___ श्रीजिनेश्वर देवों ने जो कहा है वही सच्चा और निःशंक है। उससे श्रीजिनेश्वर देवों के वचनों पर दृढ़ श्रद्धा पैदा होती है।
(१४) श्रीसम्यग्दर्शन-सम्यक्त्व युक्त व्रत और अनुष्ठान आत्मा को हितकर होता है ।
(१५) सम्यक्त्व प्राप्त करने वाले प्रात्मा का संसारभ्रमण काल मर्यादित हो जाता है । इत्यादि अनेक लाभ श्रीसम्यग्दर्शनवन्त को प्राप्त होते हैं।
श्रीसम्यग्दर्शन पद का आराधन सुदेव को सुदेव, सुगुरु को सुगुरु और सुधर्म को सुधर्म मानकर, श्रीसर्वज्ञ कथित जीवाजीवादि नव तत्त्वों को भी सही रूप में मानकर एवं सुदेवादि पर और जीवाजीवादि नव तत्त्वों पर दृढ़ श्रद्धा रखकर, श्रीसम्यग्दर्शन के सड़सठ भेदों का स्वरूप समझ कर, मिथ्यात्व का त्याग कर, श्रीसम्यग्दर्शन को विधिपूर्वक स्वीकार कर, उसका
श्रीसिद्धचक्र-नवपदस्वरूपदर्शन-१५५